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उसका दोष क्या है भाग - 6 15 पार्ट सीरीज

       उसका दोष क्या है (भाग - 6) 15 पार्ट सीरियल
  
            कहानी अब तक 
  रमा और उसके भैया मोहन विद्या को  छोड़ने उसके घर तक जाते हैं,जहां रमा के भैया मोहन विद्या के घरवालों से काफी देर तक बातचीत करते हैं और उसके बाद अपने घर वापस आते हैं।
                  अब आगे 
   रमा और मोहन घर वापस आए मोहन अपनी बाइक लगाने लगा,रमा घर के अंदर जाने लगी।
  मोहन -  "रुको रमा थोड़ी देर बाहर रुको मैं आ रहा हूं"।
मोहन नेअपनी बाइक लगाई उसे लॉक किया और उसके बाद रमा के पास आए  और रमा का हाथ पकड़कर सड़क की ओर निकल गए।
  रमा  -  "क्या बात है भैया बहुत गंभीर लग रहे हैं, और हम फिर वापस कहां जा रहे हैं" ? 
  मोहन  -  "कहीं दूर नहीं, कुछ बातें हैं जो मैं घर में करना नहीं चाहता। मैं तुम्हें सावधान कर रहा हूं। मैं जो कुछ कह रहा हूं थोड़ा ध्यान से सुनो"।
रमा  -  " कहिए भैया ऐसी क्या बात है जिसको करने के लिए आपको इतनी सावधानी बरतनी पड़ रही है"।
   मोहन  -    "देखो रमा तुम्हारी सहेली है विद्या। वह तुम्हारी सहेली है और बहुत प्यारी लड़की है, इसलिए मैं तुम्हें सावधान कर रहा हूं। मुझे लगता है रमेश उसकी ओर आकर्षित है,तुम थोड़ा ध्यान रखो। तुम्हारी सहेली होने के नाते वह मुझे भी बहुत प्यारी है। मैं नहीं चाहता उसके जीवन में कभी किसी तरह की कोई दुर्घटना घटे या उसे कोई तकलीफ हो। इसलिए तुम थोड़ा ध्यान रखो, रमेश से वह दूर रहे"।
विद्या  -  "परंतु आप ऐसा कैसे कह रहे हैं भैया, मुझे तो ऐसा कभी लगा नहीं रमेश भैया उसकी ओर आकर्षित हों"।
  मोहन   -    "मुझे पता था तुम्हें नहीं लगा होगा, तुम नहीं समझ पाई होगी। परंतु मुझे लगता है विद्या भी इस बात को जानती है,इसलिए यहां आने के बाद हम लोगों के पास बैठना नहीं चाह रही थी। उसे घबराहट मुझसे नहीं रमेश से हो रही थी। मैंने इस बात पर गौर किया है बहुत गहराई से। इसलिए मैं तुमसे कह रहा हूं की तुम कोशिश करना वह दूर रहे"।
   रमा  -   "भैया यदि रमेश भैया पसंद भी करते हैं उसे तो क्या बुरा है। रमेश भैया तो काम भी अच्छा कर रहे हैं उनका अपना व्यवसाय है। आमदनी भी बहुत अच्छी होती है,विद्या तो सुखी ही रहेगी न उनके साथ। और विद्या भी टीचर बनना चाहती है, उसका रिजल्ट भी अबतक बहुत अच्छा रहा है तो उसका चयन होना निश्चित है जिसमें मुझे नहीं लगता रमेश भैया या उनके परिवार को कोई आपत्ति होगी। रमेश भैया और विद्या एक दूसरे के लिए उपयुक्त ही रहेंगे"।
मोहन  -   "तुम समझ नहीं रही हो रमा,विद्या की और हमारी जाति एक नहीं है,इसलिए इन दोनों के विवाह में कई अड़चन आएंगे। इनका विवाह होना असंभव नहीं हो मुश्किल तो अवश्य है। पहले तो हमारा परिवार ही रमेश का विवाह विद्या से करने के लिए तैयार नहीं होगा,और मुझे नहीं लगता विद्या के परिवार वाले भी तैयार होंगे शादी के लिये,इसलिए मैं कह रहा हूं तुमसे कोशिश करना विद्या और रमेश की निकटता न होने पाए। और हाँ  इस बात की चर्चा हमारे घर में तुम किसी से मत करना,वरना तुम दोनों की दोस्ती भी खतरे में पड़ जायेगी। इसलिए मैं यह बात तुम्हें घर से दूर लाकर बता रहा हूं"।
   रमा  -    "ठीक है भैया मैं कोशिश करूंगी विद्या और रमेश भैया एक दूसरे से दूर रहें। परंतु मुझे अब तक ऐसा कुछ दिखा ही नहीं जिससे लगे यह दोनों एक दूसरे के निकट जाना चाह रहे हैं। अगर मुझे कभी भी ऐसा लगा तो मैं जरूर उसे सावधान कर दूंगी,लेकिन यदि कुछ ऐसा नहीं लगा तो ऐसा कहने का मतलब होगा विद्या और रमेश भैया दोनों के चरित्र पर  लांछन लगाना। इसलिए मैं बिना उन दोनों के कुछ कहे या कुछ अपनी आंखों से देखे कुछ नहीं कहूंगी"। 
   मोहन -   "ठीक है! बस तुम अपनी दृष्टि  सजग रखना। विशेषकर रमेश के व्यवहार पर अपनी दृष्टि रखना"।
  कहकर मोहन चुप हो गया फिर दोनों भाई बहन घर के अंदर आ गए।
   मां  -    "अरे तुम लोग आकर फिर कहां चले गए थे। एक तो  आने में देर किया फिर आकर कहीं चले गए, कहां गए थे"।
   मोहन -  "कुछ नहीं माँ वह मेरे पॉकेट से पेन गिर गया था,तो मुझे लगा कि आसपास गिरा होगा बाहर निकल कर देखने चला गया था |
  उमा -   "भैया पेन मिल गया आपको"?
  मोहन   -    "हां मिल गया देखो यही गिरा था"।
   कहकर उसने अपने पॉकेट से पेन निकालकर उमा को दिखाया।
   मां  -  "हो गया अब चलो तुम लोग हाथ मुंह धो कर आओ, खाना निकाल रही हूं"।
    फिर सब ने मिलकर खाना खाया। खाने के बाद थोड़ी देर आपस में बातें करते रहे। उमा भैया से बातें कर रही थी परंतु रमा थके होने की बात कहकर सोने आ गई। 
   सोने तो आयी परन्तु नींद उसकी आँखों से दूर था। उसका ध्यान अभी भी भैया की बातों पर ही था। उसे याद आ गया लाइब्रेरी गई थी वह रमेश भैया के साथ,उसके बाद से ही विद्या उसके घर आना नहीं चाह रही थी। उस दिन भी विद्या कुछ खोई खोई दिखी थी, जब वह पत्रिका लेकर आई थी लाइब्रेरी में उन लोगों के पास। तभी से विद्या के व्यवहार में कुछ परिवर्तन तो लगा था,परंतु उस समय उसने ध्यान नहीं दिया था। परंतु अभी लग रहा था,भैया के बात करने के बाद वह समझ पा रही थी वहां कुछ तो जरूर हुआ था जो विद्या परेशान थी। इसलिए शायद वह लाइब्रेरी से भी जिद करके जल्दी आई थी। 
रमा यही सोच रही थी आज भैया जब विद्या को छोड़ने गए उन्होंने मुझे साथ लिया,परंतु रमेश भैया कभी एक बार भी नहीं बोले साथ में चलने को। वह हमेशा चाहते थे विद्या को अकेले ले जाकर उसके घर छोड़ना। और उनके कहने पर विद्या मना भी कर देती,मना करते हुए अकेली ही निकल जाती थी। परंतु कभी-कभी ज़िद करके फिर भी रमेश भैया उसे अपने साथ बाइक में बिठाकर उसके घर तक ले जाते। लेकिन आज जब भैया ने कहा छोड़ने जाने के लिए,विद्या ने मना नहीं किया। इसका मतलब उसे रमेश भैया और भैया के व्यवहार में कुछ तो अंतर अवश्य लगा,तभी उसने भैया को छोड़ने जाने के लिए एक बार भी मना नहीं किया। भैया ने भी चलते समय मुझे कहा चलने के लिए। पहले तो मुझे भी पता नहीं था मुझे लेकर जाएंगे? तो विद्या भी यही समझी होगी भैया उसे छोड़ने जाएंगे अकेले, तब भी उसने मना नहीं किया। इसका मतलब स्पष्ट है,भैया का व्यवहार उसे अच्छा लगा,भाई समान स्नेह भरा लगा। परंतु रमेश भैया के व्यवहार में भ्रातृ भाव उसे नहीं मिला होगा,तभी वह मना करती होगी। यही सब सोचते हुए रमा को नींद आ गई। 
      अगले दिन रमा कॉलेज के लिए तैयार हुई तो भैया ने कहा -  "मुझे भी रांची जाना है,थोड़ा रुको मैं तुम्हें कॉलेज छोड़ दूंगा"|
    रमा  -   "भैया रोड पर विद्या मेरा इंतजार करेगी, और आप तो अभी तैयार भी नहीं हुए हैं। मैं नहीं जाती हूं तो विद्या रोड पर अकेली खड़ी परेशान होगी"।
  मोहन  -   "ठीक है ऐसा करो तुम आगे बढ़ो और तुम रोड पर रुकना मैं तुरंत आ रहा हूं पीछे से"।
    "अच्छा भैया" कहकर रमा घर से निकल गई। मोहन जल्दी जल्दी तैयार होकर बाइक निकालकर चल पड़ा। रोड पर विद्या और रमा दोनों खड़ी थीं। मोहन ने बाइक रोकी और कहा - 
  " चलो जल्दी बैठ जाओ दोनों"|
   दोनों उसकी बाइक में बैठ गई।
   मोहन -   "आप दोनों कृपया अपने पैर दोनों साइड करके बैठें जैसे मैं बैठा हूं। यह कार नहीं है। कहीं गिरी तो मैं परेशान हो जाऊंगा तुम दोनों की देखभाल करने में। रमा और विद्या हंसते हुए अपने पैर दोनों साइड करके बैठ गईं। भैया ने एक बार और चेतावनी दी   -  " देखो बाइक अच्छी तरह पकड़ लेना। रमा ऐसा करो तुम मुझे पकड़ लो और विद्या तुम रमा को अच्छे से पकड़ लो जिससे गिरने का डर नहीं रहे"।
   विद्या से रहा नहीं गया उसने कहा -    "भैया आप इतना डरते हैं तो हमें बाइक से क्यों ले जा रहे हैं, उतार दीजिए हम ऑटो से चले जाएंगे"।
   मोहन  -  "अरे मैं डर नहीं रहा हूं,मैं तो सावधानी बरत रहा,जिससे कोई खतरा न रहे"।
    उनकी बाइक चली तो सीधा महिला कॉलेज के गेट के पास रुकी। दोनों को उतार कर भैया जाने लगे। जाते जाते उन्होंने कहा -  "वापसी में तुम लोग चली जाना,मेरा कोई निश्चित नहीं है कि मैं  कब आऊंगा"।
और भैया चले गए। कॉलेज के गेट के अंदर जाते हुए विद्या ने कहा  -   
   "रमा भैया कितने अच्छे हैं! कितनी जिम्मेदारी से हम लोग को लाए,उन्हें कितनी चिंता थी हमारी! हम किसी खतरे में नहीं पड़ें । और वापसी के लिए भी बता दिया हम उनका इंतजार न करें"।
   रमा   -   "विद्या सभी के बड़े भाई ऐसे ही होते हैं"।
   विद्या  -     "नहीं रमा सभी बड़े भाई ऐसे नहीं होते। मेरे बड़े भाइयों को तो जरा भी परवाह नहीं कि मैं कॉलेज कैसे जाती हूं,कैसे पढ़ाई कर रही हूं। कभी किसी काम के लिए कहूं भी तो मना कर देते हैं। उन्हें हमारे लिए बिल्कुल ही फुर्सत नहीं है। काश वे भी मोहन भैया जैसे होते"।
   रमा  -    "अरे तुम इतनी प्रशंसा मत करो भैया की,और उनके सामने तो बिल्कुल मत करना। जितना मुझे डांटते हैं ना मैं ही समझती हूं । कितनी बुरी तरह डांटते हैं,मुझे पूरा डरा कर रखते हैं। अभी आए हुए उनको दो दिन नहीं हुआ और मेरे पूरे साल का हिसाब ले लिया। मैं और उमा कब जाती हैं,कब आती हैं,कितने दोस्त हैं,कब लाइब्रेरी जाते हैं,कौन सी किताबें लेते हैं,क्या पढ़ते हैं,सारा पूछ लिया। और एक बात कहूं,उनके सामने कभी झूठ बोलने की हिम्मत नहीं होती; हमारे झूठ को तुरंत पकड़ लेते हैं वे,फिर तो हमारी शामत आ जाती है। जितने प्यारे दिखते हैं वह,उससे अधिक कड़े भी हैं। शासन करते हैं वह तो हम पर,पूरा शासन करते हैं"।
    विद्या  -    "जब इतना स्नेह करते हैं तब उनका शासन भी अच्छा लगेगा। कल देखा नहीं मुझे कैसे कहा था  - शाम को तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं थोड़ा रुको मैं छोड़ आता हूं तुम्हें। पर सच कहूं रमा भैया की बात में,उनकी आवाज में जाने ऐसा क्या था कि मैं उनका विरोध नहीं कर पाई। मुझे अच्छा भी लगा। सच बहुत अच्छे हैं भैया,तुम किस्मत वाली हो"|
   रमा -   " हाँ क्यों नहीं बहुत अच्छे भैया हैं। तुम्हें अगर डांटते तब पता चलता"।
    विद्या  -   " हाँ तुम्हें और उमा को डांटते हैं तो उसमे भी उनका तुम्हारे लिये प्यार छुपा हुआ है,तुम्हारे लिए परवाह छिपी हुई है,इसलिए कभी भी गुस्सा मत होना। बस इतना ध्यान रखना तुम्हारे भैया बहुत अच्छे हैं"।
   रमा हंसते हुए कहती है  -   "सिर्फ मेरे ही नहीं अब तो वह तुम्हारे भी "बहुत अच्छे भैया हैं"। भगवान करे जैसे मैं डांट सुनती हूं,बस वैसे ही डांट सुनने का कभी तुम्हें भी अवसर मिल जाए"।
  दोनों हंसते हुए अपने क्लास रुम में चली जाती हैं।

              कथा जारी है। आगे क्या हुआ जानने के लिए बने रहें मेरे साथ।
                                           क्रमशः
         निर्मला कर्ण

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